गुरुवार, 28 अगस्त 2014

"तीजा जगार" विमोचित

    बस्तर (छत्तीसगढ़) अंचल के नारी-लोक 
             की महागाथा "तीजा जगार" विमोचित
पूरे दस वर्षों की लम्बी प्रतीक्षा और धैर्य के बाद "तीजा जगार" का प्रकाशन पिछले महीने भारतीय ज्ञानपीठ से हुआ। "तीजा जगार" (गुरुमायँ सुकदई द्वारा प्रस्तुत बस्तर, छत्तीसगढ़ अंचल के नारी-लोक की महागाथा) पुस्तक का विमोचन इस महागाथा की गायिका स्वयं गुरुमाय सुकदई कोर्राम के हाथों एक सादे कार्यक्रम में बिना किसी ताम-झाम के कोंडागाँव में सम्पन्aन हुआ। पुस्तक का विमोचन करते हुए गुरुमायँ सुकदई भाव-विभोर हो गयीं। उन्होंने कहा कि प्राय: पुस्तकों का विमोचन बड़े-बड़े समारोहों में नामी-गिरामी व्यक्तित्वों के द्वारा किया जाना तो उन्होंने सुन रखा था किन्तु इस अलिखित महागाथा को पुस्तक-रूप में प्रस्तुत करने वाले हरिहर वैष्णव ने बजाय किसी नामी-गिरामी व्यक्तित्व के मुझ जैसी अनपढ़ और ठेठ गँवई-श्रमिक महिला से इसका विमोचन मेरे ही घऱ पर करवा कर मुझे गौरवान्वित किया है। मेरा सम्मान बढ़ाया है। मैं उनके प्रति आभार व्यक्त करती हूँ।
ज्ञात हो कि बस्तर अंचल में चार लोक महाकाव्य वाचिक परम्परा के सहारे पीढ़ी-दर-पीढ़ी संचरित होते आ रहे हैं। इन्हीं चार लोक महाकाव्यों में एक "तीजा जगार" भी है। "आलोचना के अमृत-पुरुष" प्रो. (डॉ.) धनंजय वर्मा जी, जो डॉ. हरिसिंह गौर विश्वविद्यालय, सागर (मध्य प्रदेश) के कुलपति रह चुके हैं, इस पुस्तक के फ्लैप पर लिखते हैं, "वाचिक परम्परा में पीढ़ी-दर-पीढ़ी संचरित  होते आ रहे लोक-महाकाव्य "तीजा जगार" को, नारी के द्वारा, नारी के लिये, नारी की  महागाथा कहना अतिशयोक्ति न होगा। आदिवासी बहुल बस्तर अंचल शुरू से ही मातृ-शक्ति का उपासक रहा है। "तीजा जगार" उसी मातृ-शक्ति की महागाथा है। इसमें नारी का मातृ-रूप ही मुखर है। नारी यहाँ तुलसी का बिरवा रोपती है, सरोवर और बावड़ी खुदवाती है, बाग़-बगीचे लगवाती है तो निष्प्रयोजन नहीं; वह इनके माध्यम से सम्पूर्ण मानवता, जीव-जन्तु और पेड़-पौधों यानि प्राणि-मात्र के लिये अपनी ममता का अक्षय कोष खुले हाथों लुटाती है। वर्षों से पिछड़ा कहे जाने को अभिशप्त बस्तर अंचल के आदिवासियों की नैतिक और सांस्कृतिक समृद्धि का दस्तावेज है, "तीजा जगार"। आदिवासियों की घोटुल जैसी पवित्र संस्था को विकृत रूप में पेश करने वाले विदेशी ही नहीं, देशी नृतत्त्वशास्त्री, साहित्यकार, छायाकार, कलाकार आदि संस्कृति-कर्मियों की दृष्टि से अब तक अछूती "तीजा जगार" महागाथा के माध्यम से हरिहर वैष्णव ने बस्तर की समृद्ध संस्कृति को समग्रता में प्रस्तुत किया है। बस्तर की लोक-संस्कृति और लोक-गाथा को एक नयी रोशनी में उद्घाटित करती उनकी यह शोधपूर्ण प्रस्तुति रचनात्मक अनुसन्धान के नये प्रतिमान भी स्थापित करती है।"
इस पुस्तक में मूल लोक-भाषाहल्बी के साथ-साथ हिन्दी अनुवाद भी है, जिससे मूल लोक-भाषा का भी आनन्द आये और अनुवाद का भी। यह पुस्तक अंचल के लोक-चित्रकार और मेरे अनुज खेम वैष्णव द्वारा बस्तर की लोक-चित्र-शैली में तैयार अद्भुत-आकर्षक रेखांकनों एवं उनकी पुत्री, मेरी भतीजी रागिनी द्वारा तैयार मुख-पृष्ठ से सुसज्जित है।  383 पृष्ठीय इस हार्ड कवर पुस्तक की कीमत 490.00 रुपये है।
हरिहर वैष्‍णव

गुरुवार, 7 अगस्त 2014

मुण्डन


हरिशंकर परसाई 

किसी देश की संसद में एक दिन बड़ी हलचल मची। हलचल का कारण कोई राजनीतिक समस्या नहीं थी, बल्कि यह था कि एक मंत्री का अचानक मुण्डन हो गया था। कल तक उनके सिर पर लंबे घुंघराले बाल थे, मगर रात में उनका अचानक मुण्डन हो गया था।

सदस्यों में कानाफूसी हो रही थी कि इन्हें क्या हो गया है। अटकलें लगने लगीं। किसी ने कहा- शायद सिर में जूं हो गयी हों। दूसरे ने कहा- शायद दिमाग में विचार भरने के लिए बालों का पर्दा अलग कर दिया हो। किसी और ने कहा- शायद इनके परिवार में किसी की मौत हो गयी। पर वे पहले की तरह प्रसन्न लग रहे थे।

आखिर एक सदस्य ने पूछा- अध्यक्ष महोदय! क्या मैं जान सकता हूं कि माननीय मंत्री महोदय के परिवार में क्या किसी की मृत्यु हो गयी है?

मंत्री ने जवाब दिया- नहीं।

सदस्यों ने अटकल लगायी कि कहीं उन लोगों ने ही तो मंत्री का मुण्डन नहीं कर दिया, जिनके खिलाफ वे बिल पेश करने का इरादा कर रहे थे।

एक सदस्य ने पूछा- अध्यक्ष महोदय! क्या माननीय मंत्री को मालूम है कि उनका मुण्डन हो गया है? यदि हां, तो क्या वे बतायेंगे कि उनका मुण्डन किसने कर दिया है?

मंत्री ने संजीदगी से जवाब दिया- मैं नहीं कह सकता कि मेरा मुण्डन हुआ है या नहीं!

कई सदस्य चिल्लाये- हुआ है! सबको दिख रहा है।

मंत्री ने कहा- सबको दिखने से कुछ नहीं होता। सरकार को दिखना चाहिए। सरकार इस बात की जांच करेगी कि मेरा मुण्डन हुआ है या नहीं।

एक सदस्य ने कहा- इसकी जांच अभी हो सकती है। मंत्री महोदय अपना हाथ सिर पर फेरकर देख लें।

मंत्री ने जवाब दिया- मैं अपना हाथ सिर पर फेरकर हर्गिज नहीं देखूंगा। सरकार इस मामले में जल्दबाजी नहीं करती। मगर मैं वायदा करता हूं कि मेरी सरकार इस बात की विस्तृत जांच करवाकर सारे तथ्य सदन के सामने पेश करेगी।

सदस्य चिल्लाये- इसकी जांच की क्या जरूरत है? सिर आपका है और हाथ भी आपके हैं। अपने ही हाथ को सिर पर फेरने में मंत्री महोदय को क्या आपत्ति है?

मंत्री बोले- मैं सदस्यों से सहमत हूं कि सिर मेरा है और हाथ भी मेरे हैं। मगर हमारे हाथ परंपराओं और नीतियों से बंधे हैं। मैं अपने सिर पर हाथ फेरने के लिए स्वतंत्र नहीं हूं। सरकार की एक नियमित कार्यप्रणाली होती है। विरोधी सदस्यों के दबाव में आकर मैं उस प्रणाली को भंग नहीं कर सकता। मैं सदन में इस संबंध में एक वक्तव्य दूंगा।

शाम को मंत्री महोदय ने सदन में वक्तव्य दिया-अध्यक्ष महोदय! सदन में ये प्रश्न उठाया गया कि मेरा मुण्डन हुआ है या नहीं? यदि हुआ है तो किसने किया है? ये प्रश्न बहुत जटिल हैं। और इस पर सरकार जल्दबाजी में कोई निर्णय नहीं दे सकती। मैं नहीं कह सकता कि मेरा मुण्डन हुआ है या नहीं। जब तक जांच पूरी न हो जाए, सरकार इस संबंध में कुछ नहीं कह सकती। हमारी सरकार तीन व्यक्तियों की एक जांच समिति नियुक्त करती है, जो इस बात की जांच करेगी। जांच समिति की रिपोर्ट मैं सदन में पेश करूंगा।

सदस्यों ने कहा- यह मामला कुतुब मीनार का नहीं जो सदियों जांच के लिए खड़ी रहेगी। यह आपके बालों का मामला है, जो बढ़ते और कटने रहते हैं। इसका निर्णय तुरंत होना चाहिए।

मंत्री ने जवाब दिया- कुतुब मीनार से हमारे बालों की तुलना करके उनका अपमान करने का अधिकार सदस्यों को नहीं है। जहां तक मूल समस्या का संबंध है, सरकार जांच के पहले कुछ नहीं कह सकती।

जांच समिति सालों जांच करती रही। इधर मंत्री के सिर पर बाला बढ़ते रहे।

एक दिन मंत्री ने जांच समिति की रिपोर्ट सदन के सामने रख दी।

जांच समिति का निर्णय था कि मंत्री का मुण्डन नहीं हुआ था।

सत्ताधारी दल के सदस्यों ने इसका स्वागत हर्ष-ध्वनि से किया।

सदन के दूसरे भाग से ‘शर्म-शर्म’ की आवाजें उठीं। एतराज उठे- यह एकदम झूठ है। मंत्री का मुण्डन हुआ था।

मंत्री मुस्कुराते हुए उठे और बोले- यह आपका ख्याल हो सकता है। मगर प्रमाण तो चाहिए। आज भी अगर आप प्रमाण दे दें तो मैं आपकी बात मान लेता हूं।

ऐसा कहकर उन्होंने अपने घुंघराले बालों पर हाथ फेरा और सदन दूसरे मसले सुलझाने में व्यस्त हो गया।

हरिशंकर परसाई