गुरुवार, 24 जनवरी 2013

अमित पुराणिक की कविताऍं

डर लगता है
बंद रहने दो इन दरवाजों को है
खिड़की के पल्‍लों को डर लगता है
है हर तरफ बस धुआं धुआं
अब तो बाहर निकलने से डर लगÌæ ãñUÐ
न जाओ तुम इन उजालों से आगे
अजनबी अंधेरों से डर लगता है
कुछ यूं ले रही है करवट ये जिंदगी अपनी
कि अब तो हर कदम पे डर लगता है
नहीं मालूम कब आखिरी बार हँसा था खुलकर
हँसने की बात ना करो मेरे दोस्‍त
खुशी की हर बात से डर लगता है
पहले ऐसी डरावनी तो न थी ये जिंदगी
हर तरफ हँसी-खुशी थी अपने थे
मन में उत्‍साह उमंग का डेरा था
जाने अनजाने हमसे क्‍या भूल हुई
जीवन की खुशी जाने कहां गुम हुई
पहले तो हर पाल काम था
एक पल को न आराम था
यूं तो अब भी काफी कुछ है बाकी
बोझ से मेरी फटी जा रही है छाती
फिर भी कुछ करने में जाने क्‍यूं मन नहीं लगता है
कहा ना ममुझे अब हर नए काम में डर लगता है
हैं अभी सपने अधूरे, नींद अभी बाकी है
पता है मुझे मंजिल पाने में मेहनत अभी बाकी है
खुद पर अब भरोसा न रहा मेरा
न करो बात किस्‍मत की डर लगता है
जाने खुद को कैसे समझाऊं
ये लड़खड़ाते कदम कैसे बढ़ाऊं
मुकाम पे बढ़ते हर कदम पर डर लगता है
जो चाहा वो सब वक्‍त से पाहले पास है
फिर भी मन में जाने क्‍या पाने की आस है
आस की बात ना करो के डर लगता है
किस्‍मत ने सब दिया
भगवान ने दामन भर दिया
जाने क्‍यूं इनसे अब कुछ मांगने में डर लगता है
मिलने सबसे जाता हूं
अक्‍सर हँसता-हॅसाता हूं
पर दिल पर चुभने वाली उस फॉंस से डर लगता है
देर रात को सोता हूं और अल्‍सुबह उठ जाता हूं
ये नहीं कि सो नहीं पाता, ख्‍वाबों के आने से डर लगता है
छुपा रखा है नए काम का जोश दिल में
मगर आने वाले  पुराने परिणामों से डर लगता है
 यूं तो मैं डरपोक नहीं मगर
बहादुरी , निर्भयता की हर बात से डर लगता है
यही प्रार्थना है ईश्‍वर से और यही अभी की आखरी आस है
हो जाए सब कुछ अच्‍छा ओर मिल जाए, जो‍ बिलकुल पास है
दे जाए अचानक ये खुशी कोई मुझे हाथ बढ़ाने में डर लगता है

आदमी की दोस्ती

याद नहीं करते कभी सताते हैं दोस्त,
हमें हर खुशी हर गम मे याद आते हैं दोस्त,
हम दोस्तों को कभी भुल नहंीं पाते ....
पता नहीं हमें कैसे भूल जाते हैं दोस्त,
शायद है कमी मुझमें ही कोई ...
क्योंकि नहीं पत्थर दिल यहां इतना कोई,
दोस्तों के संग हंँसे रोए दोस्तों संग
हर सुख-दुख में रहे दोस्तों संग
अब क्यूं नहीं मेरा दु:ख बाँटने रहता है कोई दोस्त,
सुख भी तनहा अकेला कहता है मुझको,
सुख में नहीं रहा साथ हमारे कोई,
दु:ख में भी अकेले थे, मुश्किल यहां हुई,
लोग कहते है दोस्तो से बड़ा नहीं कोई,
अब जाने क्यूं लगे इससे छोटा नहीं कोई,
जाने क्यूं लगे खता है दोस्ती,
इस जमीं पे सबसे बड़ी सजा है दोस्ती,
 मँझधार की क्या कहूँ ......
किनारे पर ही छूट जाए, वो रिश्ता है दोस्ती,
कोई कभी भी तोड़ जाए,वो कमजोर नाता है दोस्ती,
सुना है बिना दोस्त आधा है आदमी,
जाने क्यूं लगे दोस्त संग मुर्दा है आदमी,
सारे राज बाँटता है दोस्तों से
बाद मे खुले राजों से पछताता है आदमी,
दोस्ती के हर मोड़ पर धोखा खाता है आदमी,
फिर भी दोस्ती बनाता है....
दोस्ती निभाता है....
मजबूर है आदमी,
मैं तो दुश्मन को भी ना दूं वो सजा है दोस्ती,
एक काली अंधेरी गुफा है दोस्ती
दुश्मन तो दुश्मनी में भी ईमानदार हैं,
यहां लोगों से दोस्ती भी ईमानदारी से निभती,
फिर भी दोस्ती बनाता है...
नांदा है आदमी
दुश्मन तो सीने में मारे
पीठ में पड़े वो खंजर है दोस्ती
दो कदम भी साथ चला ना जाए...
वो ढीला पंचर है दोस्ती
फिर क्यूं न कहूं-एक बुरा मंजर है दोस्ती,
उपजाऊ है दुश्मनी तो बंजर है दोस्ती,
धोखेबाजों, छलियों से भरा चंेबर है दोस्ती,
चंद दिन दूध पिलाओ तो सांप भी ना उसे
रह-रह के फन उठाए वो तक्षक है दोस्ती
हर अरमान हर सपने हर कामयाबी की भक्षक है दोस्ती,
फिर भी दोस्त बनाता है....
दोस्त निभाता है...
नासमझ है आदमी
सुना है बड़े-बड़े गम दोस्तों संग भुलाता है आदमी
एैसा लगता है हर बड़ा गम दोस्तों से ही पाता है आदमी
बार-बार मुसीबतों के दरवाजे पहुंच जाता है आदमी,
जिन्दगी के मोड़ की क्या कहुं .....
सीधे रास्तों में ठोकरें खाता है आदमी
सारी जिम्मेदारियां अकेला ढोता है
बोझ तले अकेला दबकर रोता है आदमी,
फिर भी दोस्त बनाता है...
बेवस है आदमी,
दोस्तों में मजबूर है आदमी
दुश्मनों में अकेला होकर भी सुखी है
कम से कम वहां दोस्तों से महफूज है आदमी
फिर भी दोस्त बनाता है
दोस्ती निभाता है...
बेतुक है आदमी
हरी-भरी जिन्दगी घावों से भरता है
जाने क्यूं दोस्ती करता है आदमी
हारना तो है ही मौत के सामने
फिर क्यूं दोस्ती में हारता है,सर झुकाता है आदमी
जिन्दगी से अकेले लड़ना क्यूं नहीं सीख लेता
तन्हाई की आड़ मे क्यूं शरमाता है आदमी
अकेला होने पर क्यूं घबराता है आदमी
खुद को पहचान सारी शक्ति तू ही तो है
फिर को क्यूं चंद बेवफाओं से घबराता है आदमी
सिर्फ तन्हाई दूर करने लोगों से मिलता है
इसीलिए दोस्त बनाता है...
दोस्ती निभाता है.... आदमी
वो सबके काम आया, कोई उसके भी आएगा
सबके दु:ख बाटे,कोई उसके भी बांटेगा
इसीलिए दोस्त बनाता है ....
दोस्ती निभाता है ....आदमी
अपने राजों के रास्ते चाहता है,
मुसीबतें नहीं उनका हल चाहता है
इसीलिए दोस्त बनाता है..
दोस्ती निभाता है ...आदमी
दु:ख तो सह लेगा अकेला, खुशियां बाँटना चाहता है
इसीलिए दोस्त बनाता है ...
दोस्ती निभाता है... आदमी
फिर भी छला जाता है, हर पल ठोकरें खाता है
जीवन के सफर में हर मोड़ पर, हर चौराहे पर ...
खुद को तन्हा-अकेला पाता है
क्या इसीलिए दोस्त बनाता है.......
दोस्ती निभाता है आदमी ..........


आदमी की दोस्ती

याद नहीं करते कभी सताते हैं दोस्त,
हमे हर खुशी हर गम में याद आते है दोस्त,
हम दोस्तों को कभी भुल नहीं पाते ....
पता नहीं हमें कैसे भुल जाते है दोस्त,
शायद है कमी मुझमें ही कोई ...
क्योंकि नहीं पत्थर दिल यहां इतना कोई,
दोस्तों के संग हंसे रोए दोस्तों संग
हर सुख-दुख मे रहे दोस्तों संग
अब क्यूं नहीं मेरा दु:ख बाँटने रहता है कोई दोस्त,
सुख भी तनहा अकेला कहता है मुझको,
सुख में नहीं रहा साथ हमारे कोई,
दु:ख में भी अकेले थे मुश्किल यहां हुई,
लोग कहते हैं दोस्तो से बड़ा नहीं कोई,
अब जाने क्यूं लगे इससे छोटा नहीं कोई,
जाने क्यूं लगे खता है दोस्ती,
इस जमीं पे सबसे बड़ी सजा है दोस्ती,
 मँझधार की क्या कहूं ......
किनारे पर ही छूट जाए,वो रिश्‍ता है दास्ती,
कोई कभी भी तोड़ जाए,वो कमजोर नाता है दोस्ती,
सुना है बिना दोस्त आधा है आदमी,
जाने क्यूं लगे दोस्त संग मुर्दा है आदमी,
सारे राज बाँटता है दोस्तों से
बाद मे खुले राजों से पछताता है आदमी,
दोस्ती के हर मोड़ पर धोखा खाता है आदमी,
फिर भी दोस्ती बनाता है....
दोस्ती निभाता है....
मजबूर है आदमी,
मै तो दुश्मन को भी ना दूं वो सजा है दोस्ती,
एक काली अंधेरी गुफा है दोस्ती
दुश्मन तो दुश्मनी में भी ईमानदार हैं,
यहां लोगों से दोस्ती भी ईमानदारी से निभती,
फिर भी दोस्ती बनाता है...
नांदा है आदमी
दुश्मन तो सीने मे मारे
पीठ में पड़े वो खंजर है दोस्ती
दो कदम भी साथ चला ना जाए...
वो ढीला पंचर है दोस्ती
फिर क्यूं न कहूं-एक बुरा मंजर है दोस्ती,
उपजाऊ है दुश्मनी तो बंजर है दोस्ती,
धोखे बाजों छलियों से भरा चंेबर है दोस्ती,
चंद दिन दूध पिलाओ तो सांप भी ना उसे
रह-रह के फन उठाए वो तक्षक है दोस्ती
हर अरमान हर सपने हर कामयाबी की भक्षक है दोस्ती,
फिर भी दोस्त बनाता है....
दोस्त निभाता है...
नासमझ है आदमी
सुना है बड़े-बड़े गम दोस्तों सग भुलाता है आदमी
एैसा लगता है हर बड़ा गम दोस्तों से ही पाता है आदमी
बार-बार मुसीबतों के दरवाजे पहुंच जाता है आदमी,
जिन्दगी के मोड़ की क्या कहुं ..??...??
सीधे रास्तों में ठोकरें खाता है आदमी
सारी जिम्मेदारीयां अकेला ढोता है
बोझ तले अकेला दबकर रोता है आदमी,
फिर भी दोस्त बनाता है...
बेबस है आदमी,
दोस्तों में मजबुर है आदमी
दुश्मनों में अकेला होकर भी सुखी है
कम से कम वहां दोस्तों से महफूज है आदमी
फिर भी दोस्त बनाता है
दोस्ती निभाता है...
बेतुक है आदमी
हरी-भरी जिन्दगी घावों से भरता है
जाने क्यूं दोस्ती करता है आदमी
हारना तो है ही मौत के सामने
फिर क्यूं दोस्ती में हारता है,सर झुकाता है आदमी
जिन्दगी से अकेले लड़ना क्यूं नहीं सीख लेता
तनहाई की आड़ मे क्यूं शरमाता है आदमी
अकेला होने पर क्यूं घबराता है आदमी
खुद को पहचान सारी शक्ति तु ही तो है
फिर को क्यूं चंद बेवफाओं से घबराता है आदमी
सिर्फ तनहाई दूर करने लोगों से मिलता है
इसीलिए दोस्त बनाता है...
दोस्ती निभाता है.... आदमी
वो सबके काम आया, कोई उसके भी आएगा
सबके दु:ख बाटे,कोई उसके भी बांटेगा
इसीलिए दोस्त बनाता है ....
दोस्ती निभाता है ....आदमी
अपने राजों के रास्ते चाहता है,
मुसीबतें नहीं उनका हल चाहता है
इसीलिए दोस्त बनाता है..
दोस्ती निभाता है ...आदमी
दु:ख तो सह लेगा अकेला, खुशियां बाँटना चाहता है
इसीलिए दोस्त बनाता है ...
दोस्ती निभाता है... आदमी
फिर भी छला जाता है, हर पल ठोकरें खाता है
जीवन के सफर में हर मोड़ पर, हर चौराहे पर ...
खुद को तनहा-अकेला पाता है
क्या इसीलिए दोस्त बनाता है.......
दोस्ती निभाता है आदमी ..........

अमित पुराणिक
मुंगेली छत्‍तीसगढ़
 
अमित पुराणिक साप्‍टवेयर इंजीनियर हैं, सिंटेल पुणे में कार्यरत हैं। इन दिनों वे नेशविल टेनिसी यूएसए में हैं।

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