मंगलवार, 12 जून 2012

महिला पायलटों के साहस को सलाम!

डॉ. महेश परिमल
नारी जीवन हाय! तुम्हारी यही कहानी, आंचल में दूध और आंखों में पानी। भारतीय समाज में नारी को सदैव दोयम का दर्जा दिया गया है। पुरुष वर्चस्व समाज में बरसों से उपेक्षित रहने वाली नारी की करुण कहानी बहुत लम्बी है। वर्ष में दो बार देवी की पूजा करने वाले इस भारतीय समाज में पुरुषों ने नारी को सदैव अपना गुलाम बनाना चाहा। नारी से ही सृजित होने के बाद भी नारी के प्रति पुरुष सदैव एक उपेक्षा का भाव रखता है। इसलिए आज नारी को जन्म से पहले ही कोख में मार देने की कोशिश हो रही है। आश्चर्य इस बात का है कि भ्रूण हत्या का आंकड़ा शहरी क्षेत्रों में ही अधिक है। सोचो, उन 48 यात्रियों पर क्या बीत रही होगी, जब उन्हें पता चले कि जिस विमान में वे सफर कर रहे हैं, उसका अगला पहिया तो उड़ान भरते ही कहीं गिर गया है। पायलट के रूप में दो महिलाएं हैं। उस समय तो वे महिलाएँ ही उनके लिए सब-कुछ थीं। आम तौर पर महिलाओं पर कम विश्वास रखने वाले पुरुषों के लिए  उस समय वही महिलाएं किसी देवी से कम न थी। महिलाओं ने भी पुरुषों की इस भावना को समझा और पूरी सूझबूझ के साथ विमान को सुरक्षित उतार लिया। इस तरह से चार विमानकर्मियों और 48 यात्रियों की जान बच गई।
ये हादसा होते-होते रह गया।  सिल्चर हवाई अड्डे से गुवाहाटी के लिए उड़ान भरने वाले एयर इंडिया के विमान चालक कैप्टन उर्मिला यादव और सह चालक याशु को जब पता चला कि उनके विमान का अगला पहिया कहीं गिर गया है। तब उन्हें आदेश मिला कि वे विमान को जमीन से थोड़ी ही ऊपर तब तक उड़ाती रहें, जब तक विमान का ईधन खत्म नहीं हो जाता। दोनों महिलाओं ने अपने साहस का परिचय देते हुए विमान को दो घंटे तक  गुवाहाटी के गोपीनाथ बारदोलाई अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे के आसपास उड़ती रहीं। इसके बाद आपातकाल लैडिंग के लिए तैयार हुई। पहले तो उन्होंने विमान को पिछले पहिए के सहारे जमीन पर उतारा, उसके बाद अगले पहिए की ओर संतुलित किया। उनकी इस सूझबूझ की सभी ने प्रशंसा की। अंतत: सभी यात्री सकुशल विमान से बाहर आ गए। असम के मुख्यमंत्री तरुण गोगोई ने पायलटों को फोन कर उनके साहस की प्रशंसा की।
विमान में बैठे पुरुष यात्री तो अब महिलाओं के साहस को कभी चुनौती देने की हिम्मत नहीं करेंगे। यह तय है। आखिर महिलाओं ने कई बार अपने साहस का परिचय दिया है। पर पुरुष ही है, जो उनके साहस को कभी सकारात्मक रूप में नहीं देख पाता।  पिछले महीने ही रांची में  एक विधवा के साहसिक प्रयास एवं स्थानीय लोगों की सक्रियता से झपट्टामार के रूप में आतंक फैला रहे एक अपराधी को पकड़ लिया गया। इसी तरह सिरमौर के सतौन में महिलाओं ने अपने अदम्य साहस का परिचय देते हुए जंगल में लगी आगे पर स्वयं ही काबू पा लिया।  घर के मर्द जब काम के सिलसिले में बाहर गए थे तो उस वक्त इन महिलाओं ने साहस का परिचय देते हुए गांव की सीमा में घुसने से पहले ही आग को पानी के सहारे बुझा दिया। आग पर काबू पाने में कंडेला गांव की कांता देवी, विमला देवी, शीला देवी, सुमन देवी, कौशल्या देवी आदि दो दर्जन लोगों ने आग पर पानी ढो कर काबू पाया। आग बहुत विकराल थी। अगर समय रहते काबू न पाया जाता तो अधिक नुकसान होता।
एक ओर एयर इंडिया के पायलटों की हड़ताल चल रही है, ऐसे समय में जो पायलट ड्यूटी पर हैं, उन पर दोहरी जवाबदारी आ गई है। एक तो अपने साथियों ीि पर्रउ़ा को समझना, दूसरी तरफ यात्रियों की जान बचाकर विमान उड़ाना। ताजा घटनाक्रम के अनुसार एयर इंडिया जहां एक ओर 300 हड़ताली पायलटों को बर्खास्त करने पर विचार कर रही है, वहीं नागरिक उड़डयन मंत्री अजित सिंह ने कहा है कि अब एयरलाइन प्रबंधन को इस बात का फैसला करना होगा कि वह कब तक इन पायलटों को कंपनी में कायम रखती है। एयर इंडिया पायलटों की 36 दिन पुरानी हड़ताल खत्म होती नहीं दिख रही है। इस बीच, संकटग्रस्त एयरलाइन ने अपने वैश्विक परिचालन की समीक्षा के लिए एक समिति का गठन किया है, जो यह पता लगाएगी कि अंतरराष्ट्रीय उड़ानों के परिचालन के लिए वास्तव में कितने पायलटों की जरूरत है। समिति प्रबंधन को इस बारे में सलाह देगी कि एयर इंडिया के अंतरराष्ट्रीय परिचालन के लिए कितने पायलटों की जरूरत है। एयरलाइन के अधिकारियों ने कहा कि ऐसा लगता है कि एयरलाइन के पास उसकी जरूरत से अधिक पायलट हैं। अजित सिंह ने चेताया कि यदि एयरलाइन में किसी तरह का मामूली गैर जिम्मेदाराना व्यवहार या आंदोलनकारी रुख किसी अन्य वर्ग के कर्मचारियों द्वारा दिखाया है, तो इससे उसकी क्षमता को लेकर सवाल खड़े हो सकते हैं। पायलटों की हड़ताल पर केंद्र शासन सख्त है, आखिर बार-बार होने वाली हड़तालों पर रोक कैसे लगाई जाए। यह प्रश्न आज सभी को मथ रहा है। देश को रोज ही करोड़ो का नुकसान हो रहा है, वह अलग है।
पायलटों की कमी से जूझ रही एयर इंडिया के प्रबंधन के कदम क्या होंगे, यह भविष्य के गर्त में है, पर इतना तो तय है कि इस मुश्किल भरे दौर में जिस तरह से कैप्टन उर्मिला यादव और सहचालक याशु ने अपने कर्तव्य को निभाते हुए जिस साहय और सूझबूझ का परिचय दिया है, वह प्रशंसनीय है। उनके कार्य सराहनीय है। मुसीबत के समय धर्य न खोकर अपने मस्तिष्क को संयत रखते हुए काम में डूब जाना, यही है नारी की पहचान। नारी अपने इस रूप का परिचय बार-बार देती आई है, पर उसे समझने के प्रयास बहुत ही कम हुए हैं। इस घटना से यह तो सिद्ध हो गया है कि अब समय आ गया है कि महिलाओं को किसी भी रूप में कमतर न आंका जाए। उसे बराबरी का दर्जा दिया जाए। उसे काम करने का पूरा अवसर दिया जाए, तभी वह अपनी पूरी प्रतिभा के साथ हमारे सामने आएगी। एक बार फिर उन साहसी महिला पायलटों को सलाम, जिन्होंने 48 यात्रियों की कीमती जान बचाने में अपना योगदान दिया।
  डॉ. महेश परिमल

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