बुधवार, 16 मार्च 2011

ढूंढ़ते रह जाओगे दुल्हन!


टोरंटो : बेटे की चाह में बेटी से मुंह मोड़ना भारतीय समाज को मुश्किल में डालने वाला है। एक नए अध्ययन में दावा किया गया है कि कन्या भ्रूण हत्या के कारण अगले 20 वषरें में भारत में 10 से 20 प्रतिशत युवा पुरुषों को पत्नियां नहीं मिल सकेंगी। कैनेडियन मेडिकल एसोसिएशन जर्नल में प्रकाशित रिपोर्ट के मुताबिक, भारत समेत चीन और दक्षिण कोरिया में अगले बीस वर्षो में युवा पुरुषों और महिलाओं की संख्या में 10-20 प्रतिशत का असंतुलन हो सकता है, जिसके अप्रत्यक्ष सामाजिक परिणाम होंगे। गर्भ में भ्रूण की जांच करने वाली अल्ट्रा साउंड के विकसित होने के कारण एसआरबी (सेक्स रेश्यो एट बर्थ यानी जन्म के समय सेक्स अनुपात) में काफी असमानता बढ़ी है। भारत में हुए एक ताजा अध्ययन में भी कहा गया था कि पंजाब, गुजरात और राजधानी दिल्ली में ये अनुपात समान रूप से 125 पुरुष प्रति 100 महिला का है। हालांकि केरल और आंध्रप्रदेश में ये अनुपात सामान्य 105 पुरुष प्रति 100 महिला ही है। दक्षिण कोरिया और चीन की स्थिति भी भारत जैसी है। साल 1992 में दक्षिण कोरिया के कुछ प्रांतो में एसआरबी 125 और चीन में 130 तक पहुंच गया था। यूसीएल सेंटर फॉर हेल्थ एंड डेवलपमेंट इन लंदन के प्रोफेसर थेरिस हेस्केथ के नेतृत्व वाले अध्ययनकर्ताओं के दल ने कहा, साल 2005 में ही 20 साल से कम आयु के पुरुषों की संख्या, महिलाओं की तुलना में तीन करोड़ 20 लाख अधिक दर्ज की गई थी। अध्ययन ने यह भी बताया है कि इन देशों में यदि किसी जोड़े का पहला या दूसरा शिशु लड़की है, तो वे अगले बच्चे की भ्रूण जांच करा कर लड़का होना सुनिश्चित करते हैं। इस कारण भविष्य में महिलाओं की संख्या में भारी कमी होगी और लाखों पुरुष विवाह से वंचित रह जाएंगे। वर्तमान में चीन में 28 से 49 वर्ष की आयु के गैर शादीशुदा लोगों में 94 प्रतिशत पुरुष हैं। शादी नहीं होने का उनके मानसिक स्वास्थ्य पर बुरा असर पड़ता है। जिससे उनके हिंसा और अपराध में लिप्त होने का खतरा बढ़ जाता है। आइयूडी का इस्तेमाल सिर्फ दो फीसदी नई दिल्ली, एजेंसी : बाजार में मौजूद तमाम गर्भनिरोधकों में डॉक्टर सबसे बेहतर तरीका आइयूडी (कॉपर-टी) को मानते हैं लेकिन, भारत में इसका ज्यादा प्रचलन नहीं है। इसका सबसे बड़ा फायदा यह होता है कि इसे महिलाएं पांच या दस साल के लिए लगवा सकती हैं और जरूरत होने पर इसे कभी भी निकाला जा सकता है। इसका एक लाभ यह भी है कि आइयूडी को निकालने के बाद महिला को गर्भधारण के लिए इंतजार नहीं करना पड़ता। लेकिन विडंबना है कि भारत में इसका इस्तेमाल सिर्फ दो प्रतिशत महिलाएं ही करती हैं। भारत सरकार, पॉपुलेशन सर्विस इंटरनेशनल (पीएसआइ) एंड फेडरेशन ऑफ ऑब्सटेट्रीक्स एंड गायानोकोलॉजिकल सोसायटी ऑफ इंडिया (फॉक्सी) के संयुक्त कार्यक्रम पहल-2 के लांच कार्यक्रम में स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय की उपायुक्त डॉक्टर किरण अंबवानी ने एक सवाल के जवाब में कहा कि भारत में कुल गर्भनिरोधक तरीकों के इस्तेमाल में आइयूडी का सिर्फ दो प्रतिशत का योगदान है। जबकि चीन में 67 प्रतिशत लोग इसका इस्तेमाल करते हैं।