गुरुवार, 17 मार्च 2011

इस बड़े चांद से डरना नहीं


इंटरनेट पर सुपरमून के हौव्वे पर मुकुल व्यास की टिप्पणी
आगामी 19 मार्च को चांद कुछ बड़ा होकर पृथ्वी के नजदीक आएगा। लगभग 18 साल बाद हो रही इस खगोलीय घटना को लेकर तरह-तरह की भविष्यवानियां की जा रही हैं। कुछ लोगों ने यह कहना शुरू कर दिया है कि जापान में 11 मार्च को आए विनाशकारी भूकंप के लिए यह बड़ा चांद अथवा सुपरमून ही जिम्मेदार है। कुछ लोग सूरज की बढ़ी हुई गतिविधि से उत्पन्न सौर तूफान से इसका संबंध बता रहे हैं। अनेक वैज्ञानिकों का कहना है कि इनका जापान के भूकंप से कोई संबंध नहीं है। पूर्णिमा के दिन समुद्र में ऊंचे ज्वार उठ सकते हैं लेकिन भूकंप और सूनामी जैसी घटनाओं से इसका कोई संबंध नहीं देखा गया है। गौर करने वाली बात यह यह है कि जापान का भूकंप पूर्णिमा से 8 दिन पहले आया और उस दिन चांद अपनी कक्षा में पृथ्वी से अपने सबसे दूरवर्ती बिंदु पर था। नासा के एस्ट्रोनॉमर डेव विलियम्स का कहना है कि उस दिन चंद्रमा के गुरुत्वाकर्षण का प्रभाव सामान्य से भी कम था। जहां तक चंद्रमा के गुरुत्वाकर्षण और ज्वारीय हलचल का संबंध है, 11 मार्च को पृथ्वी पर बहुत ही सामान्य दिन था। आखिर यह सुपरमून क्या होता है? चंद्रमा हमारे इर्द-गिर्द अंडाकार कक्षा में चक्कर काटता है। जब यह अपनी कक्षा में पृथ्वी के सबसे समीपवर्ती बिंदु के आसपास पहुंचता है तो यह सुपरमून हो जाता है। पूर्णिमा के दिन चंद्रमा एकदम अपने निकटम बिंदु पर पहुंचेगा। कुछ लोग इसे सुपरमून कह कर एक्सट्रीम सुपरमून कह रहे हैं। इंटरनेट पर की जा रही भविष्यवाणियों के मुताबिक सुपरमून से भयंकर भूकंप, विनाशकारी तूफान आते हैं या असामान्य जलवायु परिवर्तन उत्पन्न होते हैं, लेकिन नासा वैज्ञानिक विलियम्स का कहना है कि 19 मार्च को एक बड़े और चमकीले चांद के दिखने के अलावा कोई असामान्य घटना नहीं होने वाली है। अत: सुपरमून से किसी को आतंकित होने या घबराने की जरूरत नहीं है। हां, उस दिन आप ज्यादा बड़े और ज्यादा चमकदार चांद के नजारे को कैद करना भूलें क्योंकि ऐसी खगोलीय घटनाएं लंबे अंतराल के बाद देखने को मिलती हैं। पृथ्वी पर प्राकृतिक आपदाएं सामान्य दिनों में कहीं भी सकती हैं और इन्हें किसी खगोलीय घटना से जोड़ना वैज्ञानिक तौर पर सही नहीं है। 19 मार्च को चंद्रमा हालांकि 18 या 19 वर्षो में पृथ्वी के बहुत नजदीक होगा लेकिन यह नजदीकी संभवत: आधा प्रतिशत ही ज्यादा होगी। आप जब तक एकदम सही गणना नहीं करते, आप को कुछ नया नहीं लगेगा। चांद शायद पृथ्वी के कुछ हजार किलोमीटर करीब आएगा, लेकिन यदि हम चांद की कक्षा पर गौर करें तो यह कुछ भी नहीं है। यह सही है कि चंद्रमा के गुरुत्वाकर्षण प्रभाव से समुद्र में ज्वार उत्पन्न होते हैं। जब चांद नजदीक आता है तो ज्वार कुछ ज्यादा बड़े होते हैं लेकिन यह मानने का कोई वैज्ञानिक कारण नहीं है कि इस सुपरमून से बाढ़ जाएगी या कोई और विषम मौसमीय घटना हो जाएगी। जापान का भूकंप किसी सुपरमून की वजह से नहीं आया है। इसका सबसे बड़ा प्रमाण यह है कि यह घटना पूर्णिमा से लगभग एक हफ्ते पहले हुई है। चांद और भूकंपीय गतिविधियों के बीच थोड़ा-बहुत संबंध होता है क्योंकि सूरज और चांद के पंक्ति में होने की वजह से सामान्य से ज्यादा ताकतवर ज्वार उत्पन्न होते हैं। इससे पृथ्वी की टेक्टोनिक प्लेट्स पर स्ट्रेस और बढ़ जाता है लेकिन जापान का भूकंप ऐसे समय आया है, जब सूरज और चांद के पंक्तिमें होने की वजह से ज्वार की ताकत सबसे कमजोर थी। चंद्रमा भूकंप उत्पन्न नहीं करता। भूकंप के लिए सुपरमून को दोषी देना वास्तव में किसी मकान में आग के लिए एक ऐसे व्यक्तिको दोषी ठहराने जैसा है जो शहर में नहीं है। किसी खगोलीय घटना से एक सप्ताह पहले भूकंप का आना महज एक संयोग है। भूकंप, सुनामियां और प्राकृतिक विपदाएं चंद्रमा के चक्र या ज्वारों का अनुसरण नहीं करतीं। (लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं)

हम कब समझेंगे कुदरत के क्रोध को

बुधवार, 16 मार्च 2011

ढूंढ़ते रह जाओगे दुल्हन!


टोरंटो : बेटे की चाह में बेटी से मुंह मोड़ना भारतीय समाज को मुश्किल में डालने वाला है। एक नए अध्ययन में दावा किया गया है कि कन्या भ्रूण हत्या के कारण अगले 20 वषरें में भारत में 10 से 20 प्रतिशत युवा पुरुषों को पत्नियां नहीं मिल सकेंगी। कैनेडियन मेडिकल एसोसिएशन जर्नल में प्रकाशित रिपोर्ट के मुताबिक, भारत समेत चीन और दक्षिण कोरिया में अगले बीस वर्षो में युवा पुरुषों और महिलाओं की संख्या में 10-20 प्रतिशत का असंतुलन हो सकता है, जिसके अप्रत्यक्ष सामाजिक परिणाम होंगे। गर्भ में भ्रूण की जांच करने वाली अल्ट्रा साउंड के विकसित होने के कारण एसआरबी (सेक्स रेश्यो एट बर्थ यानी जन्म के समय सेक्स अनुपात) में काफी असमानता बढ़ी है। भारत में हुए एक ताजा अध्ययन में भी कहा गया था कि पंजाब, गुजरात और राजधानी दिल्ली में ये अनुपात समान रूप से 125 पुरुष प्रति 100 महिला का है। हालांकि केरल और आंध्रप्रदेश में ये अनुपात सामान्य 105 पुरुष प्रति 100 महिला ही है। दक्षिण कोरिया और चीन की स्थिति भी भारत जैसी है। साल 1992 में दक्षिण कोरिया के कुछ प्रांतो में एसआरबी 125 और चीन में 130 तक पहुंच गया था। यूसीएल सेंटर फॉर हेल्थ एंड डेवलपमेंट इन लंदन के प्रोफेसर थेरिस हेस्केथ के नेतृत्व वाले अध्ययनकर्ताओं के दल ने कहा, साल 2005 में ही 20 साल से कम आयु के पुरुषों की संख्या, महिलाओं की तुलना में तीन करोड़ 20 लाख अधिक दर्ज की गई थी। अध्ययन ने यह भी बताया है कि इन देशों में यदि किसी जोड़े का पहला या दूसरा शिशु लड़की है, तो वे अगले बच्चे की भ्रूण जांच करा कर लड़का होना सुनिश्चित करते हैं। इस कारण भविष्य में महिलाओं की संख्या में भारी कमी होगी और लाखों पुरुष विवाह से वंचित रह जाएंगे। वर्तमान में चीन में 28 से 49 वर्ष की आयु के गैर शादीशुदा लोगों में 94 प्रतिशत पुरुष हैं। शादी नहीं होने का उनके मानसिक स्वास्थ्य पर बुरा असर पड़ता है। जिससे उनके हिंसा और अपराध में लिप्त होने का खतरा बढ़ जाता है। आइयूडी का इस्तेमाल सिर्फ दो फीसदी नई दिल्ली, एजेंसी : बाजार में मौजूद तमाम गर्भनिरोधकों में डॉक्टर सबसे बेहतर तरीका आइयूडी (कॉपर-टी) को मानते हैं लेकिन, भारत में इसका ज्यादा प्रचलन नहीं है। इसका सबसे बड़ा फायदा यह होता है कि इसे महिलाएं पांच या दस साल के लिए लगवा सकती हैं और जरूरत होने पर इसे कभी भी निकाला जा सकता है। इसका एक लाभ यह भी है कि आइयूडी को निकालने के बाद महिला को गर्भधारण के लिए इंतजार नहीं करना पड़ता। लेकिन विडंबना है कि भारत में इसका इस्तेमाल सिर्फ दो प्रतिशत महिलाएं ही करती हैं। भारत सरकार, पॉपुलेशन सर्विस इंटरनेशनल (पीएसआइ) एंड फेडरेशन ऑफ ऑब्सटेट्रीक्स एंड गायानोकोलॉजिकल सोसायटी ऑफ इंडिया (फॉक्सी) के संयुक्त कार्यक्रम पहल-2 के लांच कार्यक्रम में स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय की उपायुक्त डॉक्टर किरण अंबवानी ने एक सवाल के जवाब में कहा कि भारत में कुल गर्भनिरोधक तरीकों के इस्तेमाल में आइयूडी का सिर्फ दो प्रतिशत का योगदान है। जबकि चीन में 67 प्रतिशत लोग इसका इस्तेमाल करते हैं।