सोमवार, 15 नवंबर 2010

फिर इसी रूप में जिंदा होना चाहते हैं देवानंद

ज्वेल थीफ, हम दोनों, हरे राम हरे कृष्णा और सैकड़ों दूसरी फिल्मों के अलग अलग किरदारों में सामने आ चुके देव आनंद खुद को इसी रूप में दोबारा जिंदा करना चाहते हैं। छह दशक लंबे फिल्मी करियर ने भी काम की भूख खत्म नहीं की। बॉलीवुड में देवानंद को सदाबहार यूं ही नहीं कहा जाता। 87 साल की उम्र में भी उनकी ऊर्जा नौजवानों को परेशान करती है। दुनिया को बताने के लिए उनके पास ढेरों किस्से हैं। उ.हें पता है कि बहुत कुछ करना अब शायद मुमकिन न हो पाए इसलिए दोबारा ज.म लेना चाहते हैं देवानंद बन कर ही। एक इंटरव्यू में देव आनंद ने कहा, मैं हमेशा जल्दबाजी में रहता हूं, क्योंकि वक्त बहुत तेजी से फिसलता जा रहा है और मैं उसके पीछे भाग रहा हूं। मेरे पास बताने को बहुत सी कहानियां हैं लेकिन वक्त नहीं। काश मैं एक बार फिर देव आनंद बन कर जन्म लेता और आप लोगों से 25 साल बाद एक युवा अभिनेता के रूप में मिलता। अपने खास अंदाज से लोगों के दिलों पर लंबे समय तक राज करने वाले देव 1961 में आई फिल्म हम दोनों का रंगीन संस्कर.ा जारी करने जा रहे हैं। 3 दिसंबर को यह फिल्म सिनेमास्कोप के साथ दुनिया भर में रिलीज होगी। इसके तीन हफ्ते बाद देव आनंद की नई फिल्म चार्जशीट रिलीज होगी। देव आनंद ने बताया, सिनेमास्कोप, डिजिटल साउंड और रंगीन प्रिंट के साथ यह फिल्म बिल्कुल नए रूप में सामने आएगी। ऐसा नहीं लगेगा कि हम कोई पुरानी फिल्म देख रहे हैं। यह फिल्म मेरे लिए बेहद खास है क्योंकि मेरी जिंदगी का फलसफा साहिर लुधियानवी के रचे गीत, मैं जिंदगी का साथ निभाता चला गया.. में ढल गया है। नई फिल्म चार्जशीट में देव आनंद ने भी भूमिका निभाई है। फिल्म में उनके अलावा नसीरुद्दीन शाह और जैकी श्रॉफ भी हैं। समाजवादी पार्टी के पूर्व महासचिव अमर सिंह ने भी फिल्म में काम किया है। चार्जशीट एक क्राइम थ्रिलर है। देव आनंद ने बताया, यह एक रहस्यमय ह.या की कहानी है जिसमें पुलिस महकमे में मौजूद भ्रष्टाचार को दिखाया गया है। हिंदी सिनेमा को गाइड और टैक्सी ड्राइवर जैसी बेहतरीन फिल्म देने वाला यह दि.गज फिल्मों की रीमेक बनाने के बारे में नहीं सोचता। उन्होंने कहा, मेरे पास छह फिल्मों की स्क्रि.ट तैयार है, जब मैं आज भी सोचने के काबिल हूं तो फिर पुरानी चीजों के पीछे क्यों भागूं? मैं अपनी पुरानी कहानियों को दोहराना नहीं चाहता। हां उन फिल्मों के कुछ- कुछ हिस्से मिलाकर एक फिल्म जरूर बनाना चाहता हूं जिसका नाम होगा, द ग्रोथ ऑफ देव आनंद एज एन एक्टर। देव को भरोसा है कि उनकी दोनों फिल्मों को लोग पसंद करेंगे। उ.होंने कहा, मैं सिर्फ बनाने के लिए फिल्म नहीं बना रहा, मैं उनसे बहुत .यादा जुड़ा हुआ हूं। मैं बूढ़ा हो रहा हूं लेकिन मैं ऐसा नहीं कहता, न ही खुद को बूढ़ा महसूस करता हूं। यह पूछने पर कि क्या ऐसा कुछ बच गया है जो वह अब भी करना चाहते हैं, देव आनंद ने कहा, बहुत कुछ। ऐसे अरबों काम हैं जो मैंने नहीं किए और जि.हें मैं करना चाहता हूं। हर लम्हा नया है और आगे बढ़ रहा है। अगर आप भी उसके साथ आगे बढ़ रहे हैं तो आप महान हैं और हां मैं देवानंद हूं।

शनिवार, 6 नवंबर 2010

दीप पर्व दीपावली पर आपको लख-लख वधाइयां

 
कई लोगों का मानना हो सकता है कि दीपावली के पर्व को धमाकेदार रहना ही चाहिए। पर आजकल भारी आतिशबाजी से प्रदूषण होने लगा है। और अब इन धमाकों से खुशियां या शुभकामनाएं नहीं मिल रही हैं। मेरे परिवार में दो लोगों को अस्थमा की समस्या है। वो कई दिनों तक अनिद्रा, श्वांस फूलने और उल्टी की टेन्डेंसी से परेशान रहते हैं। इन्हीं तरह के शिकायतों के आधार पर तंग आकर सर्वोच्च न्यायालय ने पटाखों पर रात दस बजे से सुबह छह बजे तक का प्रतिबंध लगाया है। दिल्ली में तो दिल्ली पर्यावरण विभाग को इस निर्देश का पालन सुनिश्चित करने को कहा गया है। आदमी ने तो अपनी सेहत को नापने के लिए कई तरह के यंत्र बना लिए हैं। मेरे छज्जे पर गमले में लगी तुलसी को क्या परेशानी हुई, हमारे पास जानने का इसके लिए कोई यंत्र है क्या? जरा से भी शोर से डर जाने वाली गौरैया के दो-तीन दिन तक चलने वाले अनवरत शोर और धमाकों में रात-दिन कैसे कटते होंगे, कभी सोचा है क्या?दरअसल हम अंदर से खोखले होते जा रहे हैं। खाली होते हमारे अंदर को भरने के लिए हम बाहर के शोर में उमंग, खुशी, ग्लैमर खोजते रहते हैं। अंदर को भरने के किए गये लाख जतन क्या हमें सही खुशी दे पाने में सक्षम हुए हैं। पर्व-त्योहारों को हम सिर्फ धूम-धड़ाका और पूजा-पाठ के कर्मकान्ड के रूप में समझने लगे हैं। जिस अंधकार को दूर करने के लिएदीपक जलाने’ के कर्मकान्ड करते हैं। दीपक तो बचारे एक कोने में दुबक गये हैं। महंगी हजारों रुपये की इलेक्ट्रानिक लड़ियां जिस बिजली से रोशन हो रही हैं। क्या कभी सोचा है कि उसमें रोशनी भरने के लिए कितने लोगों की जिंदगी अंधेरे में डुबो दी जाती है। नर्मदा बांध के उजड़े, टिहरी के विस्थापित, भाखड़ा-नांगल के उजड़े आधी सदी से भटक रहे लोगों और उत्तराखंड, हिमाचल, जम्मू-कश्मीर, अरुणाचल प्रदेश में बन रहे 500 से ज्यादा बांध हजारों-लाखों की जिंदगी को अंधेरे में धकेल देने के बाद ही आपको रोशनी देने में सक्षम हुए हैं। दीपावली पूजा- "तमसो मा ज्योतिर्गमय"- अंधकार से प्रकाश की ओर चलो; अज्ञान से ज्ञान, असत्य से सत्य की ओर तथा जन्म और मृत्यु के चक्र से अमरत्व की ओर चलो; का संदेश देती है। पूजा क्या है? जो हमें ईश्वर से प्राप्त है, उसके प्रति अहसास और कृतज्ञता व्यक्त करना। प्रकाश का देवता सूर्य, हमारे ऋतु-मौसम चक्र का सहभागी चन्द्रमा और लालन-पालनकर्ता पृथ्वी के प्रति समय-समय पर हम कृतज्ञता व्यक्त करते रहते हैं। इन समयों पर पर्व-उत्सव करते हैं, पूजा, अपनी कृतज्ञता और सम्मान दर्शाने का सब से स्वाभाविक तरीका है। वेद के सूत्रों में कहा गया है- 'पृथ्वी, जिसमें बसे हैं सागर-नदी और अन्य जल भंडार, जिसमें अन्न और धान्य के खेत हैं, जिसमें जीते हैं चराचर सभी, वही भूमि हमको दे अपने अपूर्व फल। पृथ्वी जो जाए हैं तुम्हारे- वे हों रोगमुक्त और शोकमुक्त' अगर कर सकें तो सूर्य, चन्द्रमा और पृथ्वी को प्रति कृतज्ञ होवें। अंदर के अंधकार को इलेक्ट्रानिक लड़ियों के प्रकाश से नहीं प्रेम और ज्ञान के प्रकाश से भरें। कबीर साहब की वाणीएक नूर से सब जग उपज्या, कौन भले कौन मन्दे।’ हम सब प्रकाश से ही पैदा हुए हैं। आइंस्टीन ने भी यही कहा है कि द्रव्यमान-ऊर्जा के बीच एक समीकरण है। प्रकाश द्रव्यमान की रचना करता रहता है। हम भूल क्या कर रहे हैं? कबीर कहते हैं "रामहिं थोडा जाणिं करि, दुनिया आगै दीन। जीवां कौं राजा कहैं, माया के आधीन।।" प्रकाश को, प्रकृति को तुच्छ समझ कर इस संसार और इसकी माया को महत्व दे दिया है, तभी तो आदमी अपने को राजा तथा स्वामी समझने की भूल कर बैठा है जो कि वैभव से रहता है और माया के अधीन है।
किसी भी तरह की गुलामी से मुक्ति प्रकाश पर्व पर करने का एक बड़ा काम है। अपने पेड़, पशु-पक्षी और आस-पास के जीवन में प्रकाश कैसे आए, सोचेंगे। प्रेम और ज्ञान का प्रकाश जीवन में आए, इसके लिए मन और सोच के किस-किस अंधेरे की गंठरी फेंकनी है, यह प्रकाश पर्व का एक प्रोग्राम हो सकता है, देखना, निश्चय ही ज्यादा मजा, ज्यादा उमंग आएगा।
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सिराज केसर
TREE (ट्री), ब्लू-ग्रीन मीडिया
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