गुरुवार, 9 सितंबर 2010

साहित्य सागर के मोती

तुम समझ जाओगे क्या चीज है भारत माता।

तुमने बेटी किसी निधर््न की अगर देखी है।।

नीरज


मन की दौलत हाथ आती है तो पिफर जाती नहीं।

तन की दौलत छांव है, आता है ध्न जाता है ध्न।।

इकबाल


नजरें उफंची है तो पफरमान बदलना आसां।

सर झुकाया है तो पिफर हुक्म बदलना मुश्किल।।

गौहर रजा


जीवन का मूल समझता हूं।

धन को मैं धूल समझता हूं।।

दिनकर

दिलों में पफर्क आ जाय तो उसको पफासला कहिये।

किसी के जिस्म से दूरी को मैं दूरी नहीं कहता।।

मुजफ्रपफर हनपफी


साजिशें इतनी बढ़ीं, दरबार बौने हो गये।

आदमी उफंचे हुए किरदार बौने हो गए।।

दिनेश रघुवंशी


पथरन की छोटे टुकरन ते, है परवत का इतना उचान।

बदरन की नान्हीं बूंदन ते, सागर इतना होइगा महान।

रमई काका


मत व्यथित हो पुष्प किसको, सुख दिया संसार ने।

स्वार्थमय सबको बनाया है, यहां करतार ने।।

महादेवी वर्मा


सामान कुछ नहीं है, फटेहाल हैं मगर।

झोले में उनके पास कोई संविधान है।।

दुष्यंत कुमार

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें